________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 227 भाव-पूजा। पूज्य या आराध्य के गुणों में तल्लीन होना भाव-पूजा और आराध्य का गुणानुवाद करना, नमस्कार करना और अष्टद्रव्य की भेंट चढ़ाना द्रव्य-पूजा है। द्रव्य-पूजा निमित्त या साधन है और भाव-पूजा साक्षात्-पूजा या साध्य है। भावों की निर्मलता के बिना द्रव्य-पूजा कार्यकारी नहीं होती है। स्वामी समन्तभद्र ने भक्ति करते हुए बताया हैस विश्वचक्षुर्वृषभोऽचितः सतां समग्रविद्यात्मव पुनिरंजनः / पुनातु चेतो मम नाभिनन्दनो जिनो जितक्षुल्लकवादिशासनः // ___ अर्थ--संसार के द्रष्टा, साधुओं द्वारा वन्दनीय, केवलज्ञान के धारी, परमौदारिक शरीर के धारी, कर्मकलंक से रहित निरंजनरूप, कृतकृत्य, श्री ऋषभनाथ भगवान् मेरे चित्त को पवित्र करें। भावों की निर्मलता से ही शुभ राग होता है, इसीसे महान् पुण्य का बन्ध होता है और कर्मों की निर्जग भी होती है इस प्रकार भगवान के गुणों में तल्लीन होने से कषाय भाव मन्द होते हैं और शुभोपयोग की प्राप्ति होती है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने शुभोपयोग की प्राप्ति का वर्णन करते हुए बताया है देवदजदिगुरुपूजासु चेव दाणम्मि सुसीलेसु उपवासादिसु रत्ते सुहोवओगप्पगो अप्या // For Private And Personal Use Only