SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 226 रत्नाकर शतक वान होता है। इसके पश्चात् शेष पुण्य भोगादि के समाप्त होने पर भी मोक्ष प्रदान करने में सहायक होता है / // 16 // विवेचन- शुद्धोपयोग की प्राप्ति होना इस पंचम काल में सभी किसीके लिये संभव नहीं। यह उपयोग कषायों के अभाव से प्राप्त होता है तथ आत्मा परपदार्थों से बिल्कुल पृथक प्रतीत हो जाती है। आत्मानुभूति की पराकाष्ठा होने पर ही शुद्धोपयोग की प्राप्ति हो सकती है / परन्तु शुभोपयोग प्राप्त करना सहज है, यह कषायों की मन्दता से प्राप्त होता है / सच्चे देव की श्रद्धापूर्वक भक्ति करना तथा उनकी पूजन करना, दान देना. उपवास करना आदि कार्य कषायों के मन्द करने के साधन हैं। इन कार्यों से क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय का उपशम या क्षयोपशम होता है। जिसमें तुधा, तृषा, राग, द्वेष आदि अठारह दोष नहीं हों, जो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और अतीन्द्रिय सुख का.धारी हो, ऐसा अर्हन्त भगवान तथा सर्वकर्म रहित सिद्धभगवान् सच्चे देव हैं। इनके गुणों में प्रीति बढ़ाते हुए मन से, वचन से तथा काय से पूजा करना शुभोपयोग है। भगवान की मूर्ति द्वारा भी वैसी ही भक्ति हो सकती है, जैसी साक्षात् समवशरण में स्थित अर्हन्त भगवान् की भक्ति की जाती हैं। पूजा के दो भेद हैं-द्रव्य पूजा और For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy