________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित पाप बन्ध होता है या अत्यल्प पाय का बन्ध होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को सद्भावना पूर्वक बिना किसी आकांक्षा के दान पुण्य के कार्य करने चाहिये। इन कार्यों के करने से व्यक्ति को शान्ति और सुख की प्राप्ति होती है। भाव पूर्वक दान देने से आत्मा में रत्नत्रय की प्राप्ति होती है! जिस प्रकार सूर्य अन्धकार को नष्ट कर देता है, तीव्र जठराग्नि जैसे आहार को पचा देती है, उसी प्रकार भव-भव में अर्जित कर्म समूह को तथा शरीर के रोगादि को भाव सहित दिया गया दान नष्ट कर देता है। भाव सहित दान देनेवाला कभी दरिद्र, दीन, रोगी, मूर्ख, दुःखी नहीं हो सकता है / अतः आहार दान, औषध दान, ज्ञान दान और अभय दान इन चारों दानों को प्रति दिन करना चाहिये। पिडिदोल्दर्चिसे नोने दानवलंपिं माडे तत्पुण्यदि / कुडुगं निम्मय धर्ममोंदे नृपरोळपं भोगभूलक्ष्मियं-।। विडुगएणैसिरियं बळिक्के सुकृतं भोगंगोळतिर्दोडं / कुडुगुं मुक्तियनितंदाकुँडुवरो रत्नाकराधीश्वरा ! // 46 // हे रत्नाकराधीश्वर! प्रेम पूर्वक पूजा करने से, व्रत करने से और संतोष पूर्वक दान देने से जो पुण्य होता है वह राज संपत्ति, देव संपत्ति और भोग भूमि को देने For Private And Personal Use Only