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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 223 विवेचन- गृहस्थ को अपनी अर्जित सम्पत्ति में से प्रतिदिन दान देना आवश्यक है। जो गृहस्थ दान नहीं देता है, पूजा-प्रतिष्ठा में सम्पत्ति खर्च नहीं करता है, जिन मन्दिर बनाने में धन व्यय नहीं करता है, उसकी सम्पत्ति निरर्थक है / धन की सार्थकता धर्मो उन्नति के लिए धन व्यय करने में हो है। धर्म में खर्च करने से धन बढ़ता है, घटता नहीं / जो व्यक्ति हाथ बांधकर कंजूसी से धार्मिक कार्यों में धन नहीं लगाता है, धन को जोड़-जोड़ कर रखता रहता है, उस व्यक्ति की गति अच्छी नहीं होती है / धन के ममत्व के कारण वह मर कर तिर्यञ्च गति में जन्म लेता है। इस जन्म में भी उसको सुख नहीं मिल सकता है; क्योंकि वास्तविक सुख त्याग में है, भोग में नहीं / अपना उदर-पोषण तो शूकर-कूकर भी करते हैं। यदि मनुष्य जन्म पाकर भी हम अपने ही पेट के भरने में लगे रहे तो हम भी शूकर-कूकर के तुल्य ही हो जायेंगे। जो केवल अपना पेट भरने के लिये जीवित है, जिसके हाथ से दान-पुण्य के कार्य कभी नहीं होते हैं, जो मानव सेवा में कुछ मा खर्च नहीं करता है, दिन रात जिसकी तृष्णा धन एकत्रित करन क लिये बढ़ता जाती है, ऐसे व्यक्ति की लाश को कुत्ते भी नहीं खाते / अभिप्राय यह है कि पुण्योदय से धन प्राप्त कर उसका दान-पुण्य के कार्यों For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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