________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 222 रत्नाकर शतक अहिंसा का वर्ताव करना आवश्यक है। अहिंसक हुए बिना समाज में संतुलन नहीं रह सकता है। प्रत्येक व्यक्ति जब अपने जीवन में अहिंसा को उतार लेता है, विकार और कषायें उससे दूर हो जाती हैं तब वह समाज की ऐसी इकाई बन जाता है जिससे उसका तथा उसके वर्ग का पूर्ण विकास होता है। असत्य भाषण, स्तेय, कुशील और परिग्रह का परित्याग भी अपने नैतिक विकास तथा मानव समाज के हित के लिये करना चाहिये / जबतक कोई भी व्यक्ति स्वार्थ के सीमित दायरे में बन्द रहता है, अपना व समाज का कल्याण नहीं कर पाता। अतः वैयक्तिक तथा समाजिक सुधार के लिये धर्म का पालन करना आवश्यक है / आहारभय वैद्य शास्त्रमेने चातुरर्दानदिं सौख्यसंदोहं श्रीशिले लेप्य कांस्य रजताष्टापाद रत्नंगाळ // देहारं गेयलंग सौंदरबलं तच्चैत्यगेहप्रति ष्ठाहर्ष गेये मुक्तिसंपदवला रत्नाकराधीश्वरा!॥४५॥ हे रत्नाकराधीश्वर ! आहार, अभय, भेषज और शास्त्र इन चार प्रकार के दान समूह से सुख, शोभायुक्त पत्थर, सोना, चाँदी और रत्न श्रादि के द्वारा मंदिर बनाने से शारीरिक सौन्दर्य और शक्ति की प्राप्ति तथा इस 'दिर में संतोष पूर्वक जिन बिम्ब की प्रतिष्ठा कराने से क्या मोक्षरूपी श्रेष्ठ सम्पत्ति की प्राप्ति नहीं होगी ? // 45 // For Private And Personal Use Only