________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 221 प्रत्येक लौकिक कार्य के प्रारम्भ में भगवान का स्मरण, उनका पूजन, अर्चन और गुणानुवाद करना श्रेष्ठ है। इन कार्यों के विधि-पूर्वक करने से श्रावक के मन को बल मिलता है, जिससे वे कार्य निर्विघ्न समाप्त हो जाते हैं तथा धर्म का आराधन भी होता है। कल्याण चाहनेवाले व्यक्ति को कभी भी धर्म को नहीं भूलना चाहिये; धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थो' का समान महत्व है, जो गृहस्थ इन तीनों का संतुलन नहीं रखता है, इनमें से किसी एक को विशेषता देता है तथा शेष दो को गौण कर देता है वह अपने कर्त्तव्य से च्युत हो जाता है। जिस समय अर्थ और काम पुरुषार्थ का सेवन किया जाय उस समय धर्म को नहीं भूलना चाहिये / प्रायः देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति लौकिक कार्यों के अवसर पर धर्म को भूल जाते हैं, उन्हें संकट के समय ही धर्म याद आता है, पर ऐसा करना ठीक नहीं हैं। धर्म का सेवन सदैव करना चाहिये। दया, दान, पूजन, सेवा, परोपकार, भक्ति इत्यादि कार्य प्रत्येक के लिये करणीय हैं, इनके किये बिना मानवता का पालन नहीं हो सकता है। यदि संक्षेप में धर्म को विश्लेषण किया जाय तो मानवता से बढ़कर कोई धर्म समाज के विकाश के लिये हितकर नहीं हो सकता है। समाज में सुख-शान्ति स्थापन के लिये प्रधानत: For Private And Personal Use Only