________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 217 मनुष्य जीवन निरर्थक प्रतीत होता है। जो गृहस्थ धर्म पूर्वक अपना जीवन यापन करता है, वह सहज ही कुछ समय के उपरान्त निर्वाण लाभ कर लेता है ! परमपद प्राप्ति के दो मार्ग हैं- कठिन, किन्तु जल्द पहुँचाने वाला और सहज, पर देर में पहुँचाने वाला। प्रथम मार्ग का नाम त्याग है अर्थात् जब मनुष्य संसार के समस्त पदार्थों से मोह-ममत्व त्याग कर अात्म चिन्तन के निये अग्ण्यवास स्वीकार कर लेता है तथा इन्द्रियाँ और मन को अपने आधीन कर अपने आत्म स्वरूप में रमण करने लगता है तो यह त्याग मार्ग म ना जाता है। यह मार्ग सब किसी के लिये सुलभ नहीं, यह जल्द निर्वाण को प्राप्त कराता है, पर है कांटों का / परन्तु इतना सुनिश्चित है कि इस मार्ग से परम पद को उपलब्धि जल्द हो जाती है, यह निकट का माग है। इसमें भय, आशंकाएँ, पतन के कारण अदि सर्वत्र वर्तमान हैं। अतएव उपयुक्त मार्ग सन्यासियों के लिये ही ग्राह्य हो सकता है, अतः इसका नाम मुनिधर्म कहना अधिक उपयुक्त है। दूसरा मार्ग सरल है, पर है दूरवर्ती / इसके द्वारा रास्ता तय करने में बहुत समय लगता है। परन्तु इस रास्ते में किसी भी प्रकार का भय नहीं है, यह फूलों का रास्ता है। कोई भी For Private And Personal Use Only