________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 201 के लिए कारण स्वरूप होता है; इस अर्थ में वह आत्मा को शुभ देने वाला ह ता। पुण्य पुरय-बंध का कारण होने से मंगल कारक होता है। तथा यही पुण्य पाप-बंध का कारण होने से अमंगल कारक होता है। पाप पाप-बंध का कारण होने से महान् अमंगल कारक होता है // 38 // विवेचन-आत्मा की परिणति तीन प्रकार की होती हैशुद्धोपयोग, शुभोपयोगः और अशुभोपयोग रूप / चैतन्य, आनन्द रूप आत्मा का अनुभव करना, इसेः स्वतन्त्र अखण्ड द्रव्य समझना और पर पदार्थों से इसे सवथा पृथक् अनुभव करना शुद्धोपयोग है। कषायों को मन्द करके अर्हत् भक्ति, दान, पूजा, वैयावृत्य, परोपकार आदि कार्य करना शुभोपयोग है। यहाँ उपयोग- जीव की प्रवृत्ति विशेष शुद्ध नहीं होती है, शुभ रूप हो जाती है। तीव्र कषायोदय रूप परिणाम विषयों में प्रवृत्ति, तीव्र, विषयानुराग, आर्त परिणाम, असत्य भाषण, हिंसा, उपकार प्रभृति कार्य अशभोपयोग हैं / शुभोपयोग का नाम पुण्य और अशुभोपयोग का नाम पाप है। आत्मा का निज आनन्द जो निराकुल तथा स्वाधीन है शुद्धोपयोग के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है। इसी शुद्धोपयोग के द्वारा आत्मा अर्हन्त बन जाता है केवलज्ञान की उपलब्धि हो जाती है, तथा आत्मा परमात्मा बन जाता है; क्षधा, तृषा आदि का अभाव हो जाता है। आत्मा समस्त पदार्थों का ज्ञाता-द्रष्टा बन आता है। For Private And Personal Use Only