________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 1.86 यह चेतना युक्त, बोध व्यापार से सम्पन्न है। इसकी शक्ति सर्वथा अजेय है, कभी भी यह परतन्त्र नहीं हो सकता है / संसारी जीव की पर्याय बदलती रहती हैं; अज्ञान या मिथ्यात्व के कारण विविध प्रकार की क्रियाएँ होती हैं। इन क्रियाओं के कारण ही इसे देव, मनुष्य आदि अनेक योनियों में भूमण करना पड़ता है। जब यह शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाता है तो इसे देव, असुर आदि पर्यायों से छुटकारा मिल जाता हैं / जीव को शरीर आदि का देनेवाला नाम कम है। यह आत्मा के शुद्ध भाव अच्छादित कर नर, तिर्यश्च नरक और देव. गति में ले. जाता है। जीवका विनाश कभी नहीं होता है, किन्तु एक पर्याय नष्ट होकर दूसरी पर्यायों में उत्पन्न होता है। ___समस्त लोक में सर्वत्र कार्माण वर्गाणाएँ --- पुद्गल द्रव्य के छोटे 2 परमाणु तथा उनके संयोग से उत्पन्न सूक्ष्म स्कन्ध व्याप्त हैं। आत्मा इनमें से कई एक परिमाणु या स्कन्धों को कर्मरूप से ग्रहण करता है। इन नाना स्कन्धों में से, जो कर्मरूप में परिणत होने की योग्यता रखते हैं, वे जीव के राम-द्वेष परिणामों का निमित्त पाकर कर्मरूप में परिणत हो जाते हैं और जीव के साथ उनका बन्ध हो जाता है। कर्मबन्ध के कारण जीव नरक, तिर्यञ्च आदि गतियों में भ्रमण करता है। गतियों के कारण For Private And Personal Use Only