________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 185 हे रत्नाकराधोश्वर! ___ श्रात्म हित की कामना से उत्तम आचरण, मोक्ष की साधना के लिये समर्थ कुल, श्रेष्ठ धर्म और सम्पत्ति को ग्रहण करना चाहे तो करे। परन्तु ऐसा होता कहाँ है ? अच्छे अच्छे भोजन की इच्छा रखनेवाला, द्वेष और हिंसा से युक्त निकृष्ट आचरण को प्राप्त होकर याचना करनेवाला यह जीव हित का उपदेश कब ग्रहण करेगा ? // 33 // विवेचन- प्रत्येक जीव सुख चाहता है, इसकी प्राप्ति के लिये वह नाना प्रकार के यत्न करता है। संसार के जितने भी कार्य हैं वे सब सुख प्राप्ति के लिये ही किये जाते हैं; सभी कार्यों के मूल में सुख प्राप्ति की भावना अन्तर्निहित रहती है / जब साधक में संसार के मोहक विषयों के प्रति अनास्था उत्पन्न हो जाती है तो वह वास्तविक सुख प्राप्ति के लिये यत्न करता है। वह विषय भोग को निस्सार समझ कर अतीन्द्रिय सुख प्राप्ति की चेष्टा करता है तथा संसार में भ्रमण करानेवाले मिथ्याचारित्र को छोड़ सम्यक् चारित्र को प्राप्त करने के लिये अग्रसर होता है। ___सम्यक् चारित्र के दो भेद हैं-वीतराग चारित्र और सराग चारित्र / जिस चारित्र में कषाय का लवलेश भी नहीं रहता है तथा जो आत्म-परिणाम स्वरूप है, उसे बीतराग चारित्र कहते हैं। इस चारित्र के पालने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो चारित्र For Private And Personal Use Only