________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित fai रहा है, आत्मज्ञान की बात बतला रहा है, वह उपकारी नहीं तो और क्या है ? उसे अपना सबसे बड़ा उपकारी मान कर आत्मकल्याण की ओर लगना चाहिये / जिस शरीर के ऊपर हमें इतना गर्व है, जिसक अभिमान में आकर हम दूसरों को कुछ भी नहीं समझते हैं, तिरस्कार करते हैं, अपमान करते हैं वह शरीर बालू का भात हैं; क्षणिक है। किसी भी दिन रोग हो जायगा और यह दो हो दिन में क्षीण हो जायगा अथवा मृत्यु एकही क्षण में आकर गला दबोच देगी। जो कुछ इस जीवने सोचा है, इसने अपने मनसूबे बाँधे हैं वे सब क्षणभर में नष्ट होनेवाले हैं। अतः मृत्यु को जीवन में अटल समझ कर संसार के पदार्थों से राग-बुद्धि को दूर करना चाहिये / अज्ञानी मनुष्य के कार्यों पर बड़ा आश्चर्य होता है कि वह इन बाह्य पदार्थों को अपना कैसे समझ गया है ! दिनरात संसार के परिवर्तन को देखते हुए भी मृत्यु के मुख में जीवों को जाते हुए देखकर भी वह अपने को अजर-अमर कैसे समझता है ! यह मनुष्य अपनी त्रुटियों तथा अपने यथार्थ स्वरूप को विचारे तो उसमें पर्याप्त सहन-शीलता आ सकती है। संसार के झगड़े समाप्त हो सकते हैं। For Private And Personal Use Only