________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 176 होता; केवल पर्यायें ही बदलती हैं। इसी प्रकार मेरा आत्मा नाना स्वभाव और विभाव पर्यायों को धारण करने पर भी शुद्ध है; उसमें कुछ भी विकार नहीं है। एलेले उमळुदनाडे कोळिगोळुवर्नोडेंब नाळमातिदें। सले सत्यं बहुयोनि योळपलवु तायुं तंदेयोळपुट्टिदा // मलशुक्लं गोळाळदु बाळदुमनमन्यनोंदु वैवल्लि तां-। पलर्ग पुट्टिदेयेंदोडें कुदिवरो रत्नकराधीश्वरा ! // 31 // हे रत्नाकराधीश्वर! सत्य बात सबको बुरी लगती है। जो जैसा है उसे वैसा ही कहने पर सुननेवाले को दुःख होता है / इस जीव ने नाना योनियों में जन्म लिया; माता-पिता मिले। यदि कोई इससे कह दे कि तुम्हारा दूसरा पिता है तू अन्य से उत्पन्न हुआ है, तो यह जीव इस बात को सुनकर क्रोध से भाग बबूला हो जाता है, कहनेवाले को लाखों गालियाँ देता है और उससे कहता है कि मेरे माता-पिता दूसरे नहीं, तही अन्य पिता से उत्पन्न हुआ है, असल नहीं है / हा हा !! इस जीवमें कितना राग है, जिससे यह इस सत्य बात को सुनकर भी खेद का अनुभव करता है। आश्चर्य है कि जीव राग-वश महान् अनर्थ कर रहा है // 3 // विवेचन--- मिथ्यादृष्टि जीव इस शरीर और जन्म को नित्य समझकर अपने रिश्तों को नित्य मानता है। यदि इस जीव से कोई कह दे कि तेरे बापका कोई ठीक नहीं, तो इसे कितना बुरा For Private And Personal Use Only