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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 175 पर उनके गुण ज्यों के त्यों बने रहते हैं किसीभी प्रकार की कमी नहीं आती। विभाव गुण पर्याय में अन्य द्रव्यों के संयोग से गुणों में हीनाधिकता देखी जाती है / संयोग से संसारी जीव के ज्ञानादि गण हीनाधिक देखे जाते हैं / ____ गुण और पर्याय के इस सामान्य विवेचन से स्पष्ट है कि जीव अपने पुरुषार्थ द्वारा स्वभाव द्रव्य और स्वभाव गुण पर्याय का अनुसरण करे / जो जीव शरीर अादि कर्म जनित अवस्थाओं में लवलीन हैं, वे पर समय हैं / जबतक 'मैं मनुष्य हूँ, यह मेरा शरीर है, इस पकार के नाना अहंकार भाव और ममकार भाव से युक्त चेतना बिलास रूप आत्म व्यवहार से च्युत होकर समस्त निन्द्य क्रिया समूह को अंगीकार करने से पुत्र, स्त्री, भाई बन्धु आदि के व्यवहारों को यह जीव करता रहता है; राग-द्वेष के उत्पन्न होने से यह कर्मों के बन्धन में पड़ता चला जाता है और भ्रमवश- मिथ्यात्व के कारण अपने को भल रहता है / जो जीव मनुष्यादि गतियों में शरीर सम्बन्धा अहंकार और मम फार भावों से रहित हैं, अपने को अचलित चैतन्य विलास रूप समझते हैं, उन्हें संसार का मोह-क्षोभ नहीं सताता और वे अपने को पहचान लेते हैं / For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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