________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 174 रत्नाकर शतक ____ अनेक द्रव्य मिलकर जो एक पर्याय उत्पन्न होती है उसे द्रव्य पर्याय कहते हैं / सांधा द्रव्य पर्याय का अर्थ द्रव्य प्रदेशों में परिणम-आकार परिवर्तन है। इल के दो भेद हैं। स्वभाव व्यञ्जन पर्याय और विभाव व्यञ्जन पर्याय अथवा समान जातीय द्रव्य पर्याय और असमान जातीय द्रव्य पर्याय / प्रत्येक द्रव्य का अपने स्वभाव में परिणमन होता है वह स्वभाव व्यजन पर्याय और दो विजातीय द्रव्यों के संयोग से जो परिणमन होता है वह विभाव व्यज्जन पर्याय है / जोव के साथ पुद्गल के मिलने से नर, नारकादि जो जीव की पर्यायें होती हैं वे विभाव व्यज्जन पर्यायें कहलाती हैं तथा धर्म, अधर्म, अाकाश, काल, सिद्ध-श्रात्मा, परमाणु का जो आकार है वह स्वभाव व्यञ्जन पर्याय है। ___ संसारी जीव नरकादि में नाना प्रकार के शरीर ग्रहण करता है, उसके शरीर के विभिन्न आकार देखे जाते हैं, ये सब विभाव व्यञ्जन पर्यायें हैं / गुण पर्याय के भी दो भेद हैं - स्वभाव गुण पर्याय और विभाव गुण पर्याय / स्वभाव परिणमन में गुणों का सह रापना रहता है; इस में अगुरु लघु गुण द्वारा कालक्रम से नाना प्रकार का परिणमन होने पर भी हीनाधिकता नहीं पाती / जैसे सिद्धों में अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य, आदि गुण हैं, अगुरु लघु गुण के कारण षड्गुण हानि, वृद्धि होती है For Private And Personal Use Only