________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 170 रत्नाकर शतक हे रत्नाकराधीस्वर ! "स्त्री और पुत्र को छोड़ करके कैसे जाऊँ, इनको दूसरा कौन है" इस प्रकार दुःख को प्राप्त होते हुए आँख और मुंह खोल कर मनुष्य मर जाता है / उसके बाद फिर जन्न धारण करता है, यौवन को प्राप्त होता है, शादी करता है और बच्चे उत्पन्न होते हैं। बच्चों का मुंह चूम कर आनन्दित होता है। मनुष्य अपने पूर्व जन्म के स्त्री-पुत्र का क्यों नहीं स्मरण करता? // 28 // विवेचन--मृत्यु के समय मनुष्य मोह से वशीभूत हो कर अपने स्त्री, पुत्र, भाई, बन्धुओं से वियोग होने के कारण अत्यन्त दुःखी होता है / बह रोता है कि हाय ! मेरे इन कुटुम्चियों का लालन-पालन कौन करेगा ? अब, मेरे बिना इनको महान् कष्ट होगा, इस प्रकार विलाप करता हुआ संसार से आँखें बन्द कर लेता है। लेकिन दूसरे जन्म में यही जीव अन्य माता-पिता, स्त्री, पुत्र, सगे-सम्बन्धियों को प्राप्त होता है, उनके स्नेह में अत्याधिक तल्लीन हो जाता है, अतः पहले भव के सगे-सम्ब न्धियों को विलकुल भूल जाता है। फिर मोह क्यों ? ___संसार में जितने भी नाते-रिस्ते हैं वे स्वार्थ के हैं। जब तक स्वार्थ है, तब तक अनेक व्यक्ति पास में एकत्रित होते हैं। स्वार्थ के दूर होते ही, सब अलग हो जाते हैं / वृक्ष जब तक हरा-भरा For Private And Personal Use Only