________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 164 द्वारा कुछ भी नहीं किया जा सकता है / यह नरभव कल्याण करने के लिये प्राप्त हुआ है, इसको यों ही बरबाद कर देना बड़ी भारी मूर्खता है। जो व्यक्ति धर्माचरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उनकी मृत्यु नहीं मानी जाती; क्योंकि उन्होंने आत्मा और शरीर की भिन्नता को समझ लिया है। कर्मों के रहने पर भी भेद-विज्ञान द्वारा आत्म-स्वरूप को जान लिया हैं अतः उनकी मृत्यु नहीं मानी जाती, किन्तु जो पाप कर्म में लिप्त है, जिसे प्रात्मा-अनात्मा का भेद नहीं मालूम और जो निज रूप की प्राप्ति के लिये यत्न नहीं कर रहा है वह जीवित रहते हुए भी मृत के समान है / अतएव दुःख, आतंक, अज्ञान, मोह भ्रम आदि को दूर करनेवाले धर्म रूपी अमृत का सर्वदा सेवन करना चाहिये, क्योंकि इस धर्मामृत के पीते ही जीवों को परम सुख की प्राप्ति होती है। धर्म के समान कोई भी सुखदायक नहीं है। इसी से मोह-माया, अशान्ति दूर हो सकती है / स्त्रीयं मक्कळनेंतगल्वे निवर्गारु टेंदु गोट्टिकएवायं विळिवं वळिक्कुदयिपं तानत्त बरन्यरोळ / / प्रायंदाळदु विवाहमागि सुतरं मुद्दाडुवं मुन्निना। खोयं मक्कळनागलेके नेनेयं रत्नाकराधीश्वरा! // 28 // For Private And Personal Use Only