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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित - - हजारों बिच्छुओं के काटने के समान दुःख होता है / इसने, नरक की पीप और खून की नदियों में जिन में कीड़े बिल-बिलाते रहते हैं स्नान किया है / नारकी जीवों को भयानक गर्मी और शर्दी का दु:ख सहन करना पड़ता है। नरकों में इतनी गर्मी और शर्दी पड़ती है जिससे सुमेरु पर्वत के समान लोहे का गोला भी जलकर राख हो सकता है। इस जीव को वहाँ गर्मी और शर्दी से उत्पन्न असंख्य वेदना सहन करनी पड़तो है। जब यह गर्मी से घबड़ा कर शेमल वृक्षों की छाया में विश्रान्ति के लिये जाता है तो शेमल वृक्ष के पत्ते तलवार की धार के समान उस पर गिर कर शरीर के टुकड़े टुकड़े कर डालते हैं / नारकी जीव स्वयं भी आपस में खूब लड़ते हैं और एक दूसरे के शरीर को काटते हैं। कभी किसीको घानी में पेलते हैं, कभी गर्म तेल के कड़ाह में डाल देते हैं। तो कभी ताँबा गर्म कर किसी को पिलाते हैं, इस प्रकार नाना तरह के दुःख आपस में देते हैं / नरकों में भूख-प्यास का भी बड़ा भारी कष्ट मालूम होता है / वहाँ भूख इतनी लगती है कि समस्त संसार का अनाज मिलने पर खाया जा सकता है, किन्तु एक कण भी खाने को नहीं मिलता है / समुद्र का पानी मिल जाने पर पीया जा सकता है, परन्तु For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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