________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर शतक तब उसे कौन दूर कर सकता है। वह असाता कर्म भी इस जोव के द्वारा पहले अर्जित किया गया है, तभी वह आज उदय में आ रहा है ? कवि कहता है कि अरे धीर, वीर जीवात्मा तू घबड़ाता क्यों है / जिसपकार को शुभ, अशुभ भावनाओं के द्वारा तूने कर्म कमाये हैं, उसी तरह का शुभाशुभ फल भोगना पड़ेगा। कमफल को कोई बांटनेवाला नहीं है. यह तो अकेले ही भोगना पड़ेगा। अरे चतुर तू क्यों तमासगीर बन कर नहीं रहता है; कर्मफल में सुख-दुःख क्यों करता है ? यह तेरा स्वरूप नहीं, तू इससे भिन्न है। ___ असाता जन्य कर्मफल शान्ति और धैर्य के साथ सहन करने से ही जीव अपना उत्थ न कर सकता है, दुःख भो कुछ कम प्रतीत होता है / विचलित होने से दुःख सदा बढ़ता चला जाता है, जीव को बेचैनी होती है / नाना प्रकार के संकल्पविकल्प उत्पन्न होते हैं, जिससे दिन रात आत और रौद्र परिणाम रहते हैं / विपत्ति के समय संसार की सारहीनता का विचार करना चाहिये / सोचना चाहिये कि जो कष्ट मेरे ऊपर आये हैं, उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। इस शरीर को नाना कष्ट मिलते चले आ रहे हैं / इसने नरक में भूख, प्यास, शीत, उष्ण आदि के नाना कष्टों को सहन किया है। नरक की भूमि के छूने से ही For Private And Personal Use Only