________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित सुखस्वरूप है, की प्रतीति कराने के लिये आचार्य ने सहन-शीलता का उपदेश दिया है। साधारण व्यक्ति आत्मा को कर्मों के प्रावरण से आच्छादित मानता हुआ असाता वेदनीय कम के उदय से दुःख का अनुभव करता है / निश्चय दृष्टि से इस जीव को दुःख कभी नहीं होता है। आत्मा में सम्यग्दशन गुण की उत्पत्ति हो जाने पर कम और संसार का स्वरूप विचारने से अपने निज तत्त्व की प्रतीति होने लगती है। कविवर भूधरदास जी अपने जैनशतक में कर्म के उदय को शान्ति पूर्वक सहन करने का सुन्दर उपदेश दिया है। कवि कहता है / आयो है आचानक भयानक आसाताकर्म, . ताके दूर करनेको वली कोन अह रे / जे जे मनभाये ते कमाये पूर्व पापआप, तेई अब आये निज उदै काल लह रे // एरै मेरे वीर! काहे होत है अधीर यामें, कोज को न सीर तू अकेलो आप सह रे / भये दिलगीर कछू पीर न विनसि जाय, याही सयाने तू तमासगीर रह रे // अर्थ- जब अचानक असाता कर्म का उदय पाजाता है, For Private And Personal Use Only