________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 156 विस्तृत विवेचन सहित राग, द्वष, जन्म, मरण, बुढ़ापा आदि से रहित समझ कर उनके आदर्श द्वारा अपने को भी इन्हीं दोषों से रहित बनाता है। वह सोचता है कि हे प्रभो! जो गुण तुम्हारी आत्मा में हैं, वे मेरी भी आत्मा में हैं, पर मैं उन्हें भूला हुआ हूँ। प्रभो ! तुम्हारे गुणों का चिन्तन करने से मुझे अपने गुणों का भान हो जाता है और उससे मैं 'स्व' और 'पर' को पहचानने लगता हूँ। इस कारण मैं अनेक आपदाओं से बच जाता हूँ। मैं आपके गुणों के मनन से शरीर, स्त्री, पुत्र, कुटुम्बी, धन, वैभव आदि मेरे स्वभाव से विपरीत हैं, इस बात को भली-भाँति समझ जाता हूं। प्रभो ! जीवन का ध्येय समस्त दूषण और संकल्प-विकल्पों से मुक्त हो जाना है। शुभ और अशुभ विभाव परिणति जब तक आत्मा में रहती है, अपना निजी प्रतिभास नहीं होता। अतः हे प्रभो! आपके गुण कीर्तन द्वारा अपने पराये का भेद अच्छी तरह प्रतीत होने लगता है। इस प्रकार की भक्ति करने से प्रत्येक व्यक्ति अपना कल्याण कर लेता है। प्रत्येक व्यक्ति का उत्थान अपने हाथ में है। भगवान भक्त के दुःख को या जन्म मरण को दूर नहीं करते, क्योंकि वे वीतरागी हैं, कृतकृत्य हैं, संसार के किसी भी पदार्थ से उन्हें राग-द्वेष नहीं, पर उनके गुणों का स्मरण, मनन, For Private And Personal Use Only