________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर शतक 155 आत्मा के साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं। परन्तु मिथ्यात्व के वश जन्म-जन्मान्तरों से जो संस्कार अर्जित चले आ रहे हैं, उन्हीं के कारण इस जीव को इस निध शरीर को धारण करना पड़ता है। यह जीव इस शरीर को धारण नहीं करना चाहता है, यह इसके स्वभाव से विपरीत होने के कारण अनिच्छा से प्राप्त हुआ है। अतः जब तक इस पर वस्तु रूप शरीर में अपनत्व की प्रतीति यह जीव करता रहेगा तब तक यह बन्धन से मुक्त नहीं हो सकता। ___ शरीर के साथ रोग, शोक, मोह आदि नाना प्रपंच लगे हुए हैं। ये सब प्रतिक्षण परिणमन वाले पुद्गल की पर्यायें हैं। शरीर भी पौद्गलिक है और दुःख, शोक, रोग आदि भी पुद्गल के विकार से उत्पन्न होते हैं अतः जीव को सर्वदा रोग, शोक श्रादि को पर भाव समझ कर इनके आने पर सुखी-दुःखी नहीं होना चाहिये / साधक में जब तक न्यून्यता रहती है, वह अपने भीतर पूर्ण वीतराग चारित्र का दर्शन नहीं करता है, तब तक उसे पूर्ण-वीतराग चारित्र के धारी प्रभुत्रों की भक्ति करनी होती है। भगवान के श्रादर्श से स्वतः अपने भीतर के गुणों को जाग्रत करना साधक का काम है। साधक भगवान को मोह, For Private And Personal Use Only