________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 152 विस्तृत विवेचन सहित पूजन, स्तवन किया होगा, पर भक्ति सहित आपका दर्शन, पूजन और स्तवन कभी नहीं किया। यदि ज्ञाता, द्रष्टा आत्मा की निज परिणति रूप भावना के साथ हे प्रभो आपके गुणों को अपने हृदय में धारण करता तो निज शुद्धात्मा की प्राप्ति हो जाती। मैं अब तक अपने स्वभाव से विमुख होकर संसार के दुःखों का पात्र बना रहा; क्योंकि भाव रहित---स्व स्वभाव की भावना रहित क्रियाएँ फल दायक नहीं हो सकती। अभिप्राय यह है कि साधक भगवान् के समक्ष अपने शुद्ध चिदानन्द रूप स्वरूप को समझते हुए वर्तमान पुरुषार्थ की निर्बलता को दूर करनेका प्रयत्न करे, भगवान् के शुद्ध गुणों में अनुरक्त होकर अपने पुरुषार्थ को इतना तीव्र कर दे जिससे उसे अपने शुद्ध स्वरूप की उपलब्धि हो जाय। उसके भीतर छुपी वीतरागता प्रकट हो जाय; मोह-क्षोभ का पर्दा हट जाय / भगवान के पुण्य गुणों का कीर्तन अपने शुद्ध आत्मा के गुणों का कीर्तन है, उनकी भक्ति अपनी ही भक्ति है। जब तक साधक बहिरंग दृष्टि रखकर मोहावृत्त रहता है, अपने मूल स्वभाव से दूर हटता जाता है, तब तक उसे भगवान की यथार्थ शक्ति नहीं मिलती। व्यावहारिक दृष्टि से भी बिना भावनाओं के शुद्ध किये भक्ति करने से कोई लाभ नहीं। यह अनेक जन्म-जन्मान्तरों For Private And Personal Use Only