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रत्नाकर शतक
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विवेचन - मरण पाँच प्रकार का बताया गया है- पंडितपंडित मरण, पंडित मरण, बाल पंडित मरण, बाल मरण और बाल- बाल मरण । जिस मरण के होने पर फिर जन्म न लेना पड़े, वह पंडित - पंडित मरण कहलाता है । यह केवली भगवान या चरम शरीरियों के होता है । जिस मरण के होने पर दोतीन भव में मोक्ष की प्राप्ति हो जाय,
उसे पंडित मरण कहते देश सयंम पूर्वक मरण इस मरण के होने पर
व्रत रहित सम्यग्दर्शन
हैं, यह मरण मुनियों के होता है । करने को बाल पंडित मरण कहते हैं; सोलहवें स्वर्ग तक की प्राप्ति होती है । पूर्वक जो मरण होता है, उसे बालमरण कहते हैं, इस मरण से भी स्वर्ग आदि की प्राप्ति होती है । मिथ्यादर्शन सहित जो मरण होता है उसे बाल-बाल मरण कहते हैं यह चतुर्गति में भ्रमण करने का कारण है ।
मरण का जैन साहित्य में बड़ा भारी महत्व बताया गया है। यदि मरण सुधर गया तो सभी कुछ सुधर जाता है । मरण को सुधारने के लिये ही जीवन भर व्रत, उपवास कर आत्मा को शुद्ध किया जाता है । यदि मरण बिगड़ गया हो तो जीवन भर की कमाई नष्ट हो जाती है । कषाय और शरीर को कृश कुटुम्ब, स्त्री, पुत्र आदि से
कर आत्म शुद्धि करना तथा धन,
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