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विस्तृत विवेचन सहित
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मोटर, हाथी, घोड़ों का समुदाय सदा वर्तमान था, जिसका सम्मान बड़े-बड़े अधिकारी, धर्म धुरन्धर, राजा-महाराजा करते थे, जो रूपवान् , गुणवान् , धर्मात्मा और विद्वान् माना जाता था; आज वही दरिद्री होकर दर-दर का भिखारी बन गया है, वही अब पापी मूर्ख, अकुलीन, दुश्चरित्र, व्यसनी, दुर्गुणी माना जाता है। लोग उसके पास भी जाने से डरते हैं, उसकी खुलकर निन्दा करते हैं और नाना प्रकार से उसको बुरा-भला कहते हैं !
धनकी सार्थकता दान में है, दान देने से मोह कम होता है। शास्त्रकारों ने धन की तीन स्थितियाँ बतलायी हैं-दान, भोग और नाश; उत्तम अवस्था धन की दान है, दान देने से ही धन की शोभा है । दान न देने से ही धन नष्ट होता है, दान से धन घटता नहीं, प्रत्युत बढ़ता चला जाता है। जिस व्यक्ति ने आजीवन अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए धनार्जन किया है, वह व्यक्ति संसार का सबसे बड़ा पापी है। ऐसे कंजस व्यक्ति की मरने पर लाश को कुत्ते भी नहीं खाते हैं। केवल अपने स्वार्थ के लिये जीना और नाना अत्याचार और अन्यायों से धनार्जन करना निकृष्ट जीवन है, ऐसे व्यक्ति का जीवन मरण कुत्ते के तुल्य है। यह व्यक्ति न तो अपने लिये कुछ कर पाता है और न समाज के लिये ही, वह अपने इस मनुष्य जन्म
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