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रत्नाकर शतक
__ संसार की अवस्था यह है कि मनुष्य मोह के कारण अपनी इस पर्याय को यों ही बरबाद कर देता है। प्रतिदिन सवेरा होता है और शाम होती है, इस प्रकार नित्य आयु क्षीण होती जा रही है। दिन रात तेजी से ब्यतीत होते चले जा रहे हैं; जो सुखी हैं, जिनकी आजीविका अच्छी तरह चल रही है जिनका पुण्योदय से घर भरा पूरा है, उन्हें कुछ भी मालुम नहीं होता। ये हंसते. खेलते, मनोरंजन पूर्वक अपनी आयु को व्यतीत कर देते हैं। प्रतिदिन आंखों से देखते हैं कि कन अमुक एक्ति लान बसा;
आज अमुक । जिसने जवानी में ऐश पाराम किया था, हाथीघोड़ों की सवारी की थी, जिसके सौन्दर्य की सब प्रशंसा करते थे, जिसकी आज्ञा में नौकर-चाकर सदा तत्पर रहते थे; अब वह बूढ़ा हो गया है, उसके गाल पिचक गये हैं, सौंदर्य नष्ट हो गया है, अनेक रोग उसे घेरे हुए हैं। अब नौकर-चाकरों की नो बातही क्या घर के कुटुम्बी भी उसको परवाह नहीं करते हैं, सोचते हैं कि यह बुढ़ा कब घर ग्वाली करे, जिससे हमें छुटकारा मिले ।
प्रत्येक व्यक्ति आँखों से देखता है कि फलां व्यक्ति जो धनी था, करोड़पति था जिसका वैभव सर्वश्रेष्ठ था, जिसके घर में सोनेचाँदी की बातही क्या हीरे-पन्ने, जवाहिरात के ढेर लगे हुए थे,
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