________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०४
रत्नाकर शतक
आयु पूर्ण होने पर ही आत्मा शरीर से पृथक् होता है। मनुष्य
और तिर्यञ्च गति में अकाल मरण होता है, जिससे बाह्य निमित मिलने पर कभी भी इस शरीर से आत्मा पृथक हो सकता है।
शरीर प्राप्ति का मुख्य ध्येय आत्मोत्थान करना है। जो व्यक्ति इस मनुष्य शरीर को प्राप्त कर अपना स्वरूप पहचान लेते हैं, अपनी आत्मा का विकास करते हैं, वस्तुतः वे ही इस शरीर को सार्थक करते हैं । इस क्षण-भंगुर, अकाल मृत्यु से ग्रस्त शरीर का कुछ भी विश्वास नहीं, कि कब यह नष्ट हो जायगा अतः प्रत्येक व्यक्ति को सर्वदा श्रात्मकल्याण की ओर सजग रहना चाहिये । जो प्रवृत्ति मार्ग मैं रत रहने वाले हैं, उन्हें भी निष्काम भाव से कर्म करने चाहिये, सर्बदा अपनी योग प्रवृत्ति-मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को शुद्ध अथवा शुभ रूप में रखने का प्रयत्न करना चाहिये। कविवर बनारसी दास ने अपने बनारसीविलास नामक ग्रन्थ में संसारी जीव को चेतावनी देते हुए कहा है:जामें सदा उतपात रोगन सों छीजै गात,
कछू न उपाय छिन-छिन आयु खपनौ । कीजे बहु पाप औ नरक दुःख चिन्ता व्याप,
आपदा कालाप में बिलाप ताप तपनौ ॥
For Private And Personal Use Only