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विवेचन विस्तृत सहित
कर्म बन्ध होता है और कर्म बन्ध का फल चारों गतियों में भ्रमण करना है। इस प्रकार अज्ञान भाव जन्य संसार का स्वरूप बारबार विचारना संसार भावना है।
एकत्व भावना----यह मेरा आत्मा अकेला है, यह अकेला आया है, अकेला ही जायेगा और किये कर्मों का फल अकेला ही भोगेगा। इसके सुख, दुःख को बांटने वाला कोई नहीं है। कहा भी है-- एकः श्वानं भवति विबुधः स्त्रीमुखाम्भोज भृङ्गः
एकः श्वानं पिबति कलिकं छिद्यमानः कृपाणैः एकः क्रोधाद्यनलकलित : कर्म बध्नाति विद्वान्
एकः सर्वावरणविगमे ज्ञानराज्यं भुनक्ति । अर्थ-~~-यह आत्मा आप अकेला ही देवांगना के मुखरूपी कमल की सुगन्धि लेने वाले प्रमर के समान स्वर्ग का देव होता है
और अकेला आप ही तलवार, छुरी आदि से छिन्न भिन्न किया हुआ नरक सम्बन्धी रुधिर को पाता है तथा अकेला ही क्रोधादि कषाय रहित होकर कर्मों को बांधता है और अकेला ही ज्ञानी, विद्वान् , पंडित होकर समस्त कर्म रूप आवरण के अभाव होने पर ज्ञानरूपी राज्य को भोगता है।
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