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विस्तृत विवेचन सहित
अनित्य भावना--शरीर, वैभव, कुटुम्ब, लक्ष्मी, महल-मकान, परिवार, मित्र, हितैषी सब विनाशीक हैं। जीव सदा अविनाशी है, इसका स्वभावतः इन पदार्थों से कोई सम्बन्ध नहीं। इस प्रकार संसार की अनित्यता का चिन्तन करना, अनित्य भावना है। ___अशरण भावना-जब मृत्यु आती है तो जीव को कोई नहीं बचा सकता है। केवल एक धर्म हो इस जीव को शरण दे सकता है। कविवर दौलतरामजी ने इस भावना का सुन्दर निरूपण किया है
सुर-असुर खगाधिप जेते । मृग ज्यों हरि काल देल ते । माण मंत्र तंत्र बहु होई । मरते न बचावै कोई ।। ___ अर्थ-इन्द्र, नागेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्ती, आदि सभी मृत्यु रूपी सिंह के मुँह में हरिण के समान असहाय हो जाते हैं । मणि, मंत्र, तंत्र, अमोघ औषध तथा नाना प्रकार के दिव्योपचार मृत्यु आने पर रक्षा नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार का बार-बार चिन्तन करना अशरण भावना है। अभिप्राय यह है कि बार-बार यह विचारना कि इस जीव को मृत्यु-मुख से कोई नहीं बचा सकता है। यह सुख, दुःख का भोगनेवाला अकेला
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