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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित उधर ही आकर बैठ जाय और ४८ मिनट तक ध्यान करता रहे। प्रारम्भ में ध्यान करते समय उपयोग स्थिर नहीं रहता है, पर पीछे कुछ दिनों के अभ्यास के बाद उपयोग स्थिर हो जाता है । इस प्रकार ध्यान द्वारा आत्मा की स्वरूप प्राप्ति का अभ्यास करना चाहिये । ध्यान वस्तुतः कर्म नाश करने में प्रधान कारण है । वडलेंवी जडनं लयप्रकरनं निश्वेष्ठनं दुष्टनं । पडिमा पेनं महात्मनहहा तन्नोंदु सामर्थ्यादि । । नडेयिष्पं रथिकं बोलें नुडियिपं मार्दंगिकं बोल्बिसु - विळडुवं जोहटि बोलें कुशलनो ! रत्नाकराधीश्वरा ॥ ६॥ हे रत्नाकराधीश्वर ! ६६ नाश के व्यापार की परम्परा से रहित होकर भी जड़ शरीर को प्राप्त कर यह चेतन श्रात्मा उसका संचालक है, जैसे चेतन सारथी जड़ रथ में बैठकर उसका संचालन करता है उसी प्रकार आत्मा ही इस शरीर का संचालन कर रहा है अर्थात् आत्मा शरीर के सम्बन्ध से नाना प्रकार के कार्यों को करता है ||९|| For Private And Personal Use Only विवेचन- - अनादि कालीन कर्मों के सम्बन्ध से इस ग्रात्मा को शरीर की प्राप्ति होती चली आ रही है। कभी इसे एकेन्द्रिय जीव का शरीर मिला, कभी दो इन्द्रिय जीव का, कभी तीन इन्द्रिय जीव का कभी चार इन्द्रिय जीव का शरीर मिला है। इस
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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