________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रत्नाकर शतक
आदि का संचार न होना चाहिये। डास, मच्छर अधिक न होने चाहिये तथा अन्य किसी प्रकार की बाधा भी न होनी चाहिये । चटाई या पाषाण की शिला पर अथवा स्वच्छ भूमि में पद्मासन लगा कर ध्यान करना चाहिये।
प्रसन्न मन से एकाग्र चित्त होकर नासिकाग्र भाग की ओर दृष्टि रखकर ध्यान करना आवश्यक है। ध्यान करने के पूर्व शरीर को पवित्र कर संसार के कार्यों से विरक्त हो पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके खड़ा हो जाय और हाथ नीचे किये हुए नौ बार गा मोकार मंत्र का जाप कर उस दिशा में भूमि से मस्तक लगा कर नमस्कार करे। मन में यह प्रतिज्ञा करले कि जब तक इस श्रासन से नहीं हटूंगा, मेरे शरीर के ऊपर जो वस्त्रादि हैं, उन्हें छोड़ समस्त परिग्रह का त्याग है। पश्चात् णमोकार मंत्र पढ़कर तीन यावर्त और एक शिरोनति करे । इसका अभिप्राय यह है कि इस दिशा के जितने भी वन्दनीय तीर्थ, धर्मस्थान, अरिहन्त, साधु आदि हैं उन्हें मन वचन, काय से नमस्कार करता हूँ।
इस विधि से शेष तीनों दिशाओं में भी खड़े हो कर णमोकार मन्त्र का नौ बार जाए करे तथा प्रत्येक दिशा में तीन आवर्त और एक शिरोनति करे। पश्चात् जिधर मुख करके खड़ा हुआ था,
For Private And Personal Use Only