SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वणेदंडक. वर्णमेळ. ४२७ २८ वर्णना दंडक. २४४५ मकरालय. न+ग+र एम सात वर्णनो नगर गण चार वार आवे.=२८ वर्ण. नगरनां झूमखां वरण सौ सातनां चरणमां चार छे सकरना आलये. नगरनां झूमखां चारथी आरंभीने ९९९ वर्ण थाय त्यांसुधीनी इदमां जेटलां आवी शके तेटला आना भेद थायछे. आ उपरांत छंदोवृत्तमुक्तावलीना अभिप्राय प्रमाण नगर झूमखामां नग उपर अनुक्रमे अकेक र गण वधारवाथी इच्छापूर्वक दंडको बनेछे. एनी रचनामां कांइक चमत्कार होय एम होवू जोइये. एना नीचे प्रमाणे भेद प्रसिद्ध छ:-- क्रम. नाम.. माप. वर्ण. १४५१ पन्नगेन्द्र. न+१ग+ (र=२८ १४७८ दंभोली. न+१ग+ ९र-३१ १४९९ हेलावली. न+१+१०र३४ १५०३ मालतो. न+१+११र-३७ १५०८ केली. 'न+१ग+१२र-४० १५१० कंकेली. न+१ग+१३र४३ १५१३ लीला. न+१+१४र४६ १५१६ विलास. न+१ग+१५र=४९ इत्यादि, 'उपर- विवेचन नीचे प्रमाणे छंदोवृत्तमुक्तावलीमां करथु छे:नगणतश्चेद्गुरुस्तस्य पश्चाद्यदाष्टौ तु रेफ़ास्तदा पनगेन्द्र कृतः पन्नगैः (न+ग+८र) प्रतिपदं पन्नगेन्द्रात्पुनारेफवृद्धया तु दंभोलिहेलावलीमालती केलिकंकेलिलीलाविलासादयः (न+ग+११२) __ छंदालतामां आ विषे नीचे प्रमाणे लखेछे:--- जलधिलघोर्भवेद्रेफकैरष्टभिः पन्नगेन्द्राभिधो दंडकश्चाथ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy