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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir সৰহাৰু, शून्यना कोठामा जणावेला शब्द अने वीजा तेवाज शून्य अर्थ सूचवता शब्दो शून्य दर्शाववा माटे मूकवामां आवेळे; तेमज एक १ दर्शाववा माटे शशी आदि शब्दो अने तेमना पर्थाय वपरायछे. शशी शब्दना पर्थाय नीचे प्रमाणे छे: कवित. अब्धि नवनीतक ए. अब्ज अमृतदीधिनि; अमृतसुत ने आप अमृताधार गणो; अमृतसू इन्दु अने ओषधीश, उडुप छे, उडुपति उडुराट एने, ऋक्षेश भणो; कलानिधि कलापति कलापिनी, कलापूर्ण, कलाभृत् कलावान्, कुमुदपति कहो; कुमुदप्रियने कहो, कुमुदबांधव-बंधु, कुमुदिनीपति एने, कुमुदेश तो लहो. कैरवी कौमुदीपति, ग्लौ चंद्र चंद्रमा चांद, छायानिधि, छायाभृत, छायामृगधर छे; जैवातृक तमोन्न ने, तमोनुद तमोपह, तिमिररिपु अरिनुं नाम तमोहर छे; ताराधिपति ने नाथ, तारापीड तिथिप्रणी, तुहिनांशु दशवाजी, दाक्षायिणीपति छे; द्विजपति, द्विजराज, नक्षत्रपति ने नाथ, नक्षत्रप निशाकेतु, निशामणि वती छे. २ निशीथिनी नाथ ए तो, पर्वधि पियूषनिधि, For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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