________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आर्यगीतिना भेद
मात्रामेळ.
१२३ (१) पथ्या आर्यागीति. पथ्यासम रवि वीशे, प्रति दलमा विरति बे बनी आवेछे; पथ्या आर्यागीति, एम कहीने कविजन बोलावेछे. १४१
१२४ (२) आदिविपुला आर्यागीति. आदि दलमां विरति विपुलानो, कवतां कदापि जो आवे तो; ते आर्यागीतिने, आदिविपुला वदाय ए दावे तो. १४२
१२५ (३) अन्तविपुला आर्यागीति. . अन्त दले कदि आवे, विपुलाकेरो विराम ठिक करीने जो; तो अन्तविपुला आर्यागीति, ते सदाय कवि! केहेजो. १ ४ ३
१२६ (४) उभयविपुला आर्यागीति. उभय दल विषे जो लावो, यति विपुलातणी ठिकज धारी जो; तो उभय विपुला आर्यागीति, ते गणाय सुखकारी जो.१४४ ___ १२७ (५) मुखचपलापथ्या आर्यागीति. चपलातणो नि'म मुखे, विराम पथ्यातणों रचो दल माहे; तो मुखचपला पथ्या, आर्यागीति बने सरस पल माहे. १४५ - १२८ (६) मुखंचपला आदिविपुला आर्यागीति. मुखदल विषेज चपलातणा, नियम ने यति विपुलानी आणो; मुखचपलादि विपुला, आर्यागीति खरी तमे तो जाणो.१४६
१२९ (७) मुखचपला अन्तविपुला आर्यागीति. चपलातणो नि'म मुखे, विराम विपुलातणो दले छेले छे; मुखचपला अन्तविपुला, आर्यागीति एमज बनावे छे. १४७
१३० (८) मुरवचपला उभयविपुला आर्यागीति. उभय दलमांह विपुलातणो, विरतिने नि'म चपलानो मुखमां; मुखचपला उभयविपुला, आर्यागीति तो रचोने सुखमां. १४८
For Private And Personal Use Only