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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० रणपिंगळ. १२० (१५) उभय(महा)चपला अन्तविपुला उद्गीति. चपला करो द्विदलमां, यति विपुला तणी छेले अन्तविपुला उभयनचपला, रचो उद्गीति सरस मेळे. १३८ १२१ (१६) महाचपला उभयविपुला उद्गीति. द्विदल चपला नियम विपुला, विरति तो धरो बेमां; उभय विपुलामहाचपल, तो बने उद्गीति सरस एमां. १३९ आर्या गीति. १२२ आर्या गीति. गीतिना प्रति दलमां अंते एक गुरु वधे अने बीजें बधुं गीति प्रमाणे आवे ते आयोगाति केहेवायछे. मंदारमरंदचंयूनो कर्ता, पिंगलाचार्य अने तेना मतावलंबी अग्निपुराणपाळो तेमज केटलाक बीजा ग्रंथकारना मत प्रमाणे आयर्याना पूर्वार्द्धमान एक गुरु वधारवा केहेछे. ४+४+४+४+४+ज के विप्र+४+गु-+गु-३२ नुं प्रत्येक दल आठ डगणे प्रति दलमा, अथवा गीतिदलपर गुरु शशि आणोजी; तो ते आर्या गीति, गीतिकेरा नियमथकी जाणोजी. १४० ___ गीतिना मूळ लक्षणमां बने दलमां अंते एक गुरु होयछे, अने आया गीतिमा उपर प्रमाणे बीजो गुरु लाववा का, तेथी वे गुरु थया पण तेन बदले पेहेला वे लघु अने अंते एक गुरु पण आवी शके. एम"छंदःशास्त्र'', मां कयुं छे. “पिंगळादर्शमा" वतावेलुं आर्यागोतिनुं लक्षण "छंदःसूत्र' आदि प्रधान ग्रंथाथी विरुद्ध थायछे. ___ आमां गीतिनां बने दल उपर एक गुरु वधारवो, एम कर्दा छे. एटले छेल्ला बे गुरु तेना तेज. रेहेतां बाकीना आठ गणनां रूप गाति प्रमाणेज १६,३८,४०,००० आगळ कह्या प्रमाणे थाय छ, For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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