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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दद्गीतिना भेदं मात्रामेळ. मुखचपला अन्त विपुला, उद्गीति रचाय ए मेले. १३० ११३ (4) मुखचपला उभयविपुला उगीति. चपला धरो मुखे विपुला, विरति बे दले धरजो; मुखचपला उभयविपुला, उद्गीति नियम धरी करजो. १३१ ११४ (९) जघनचपला पथ्या उद्गीति. अन्त दले चपला नि'म, पथ्याना ल्यो यति उतारी जघनचपलान पथ्या, रचाय उद्गीति तो सदा सारी. १३२ ११५ (१०) जघनचपला आदिविपुला उद्गीति. जघनचपलादिविंधुलामां, यति विपुलातणी पे'ले; चपलातणा नियम तो, जणाय उद्गीतिने विषे छेले. १३३ ११६ (११) जघनचपला अन्तविपुला उद्गीति. जधनन चपला उद्गीति, अन्त विपुला सदा मानी; अन्त दल मांह चपलातणो, नियमने विरति विपुलानी. १३४ ११७ (१२) जघनचपला उभयविपुला उद्गीति. जघनचपला उभय विपुलामां, विपुला विरति द्विदले; अन्त दलमांह चपलातणो, नियम उद्गीति विषेज पळे. १३५ ११४ (१३) महाचपला पथ्या उद्गीति. पथ्या यति द्विदलमां, पळे द्विदल नियम चपलानो; पथ्या महाजचपला, रचाय उद्गीति सदाय ए जाणो. १३६ . ११९ (१४) महाचपला आदिविपुला उद्गीति. चंपला रचो द्विदलमांह, ने विपुला विरति पे'ले; उद्गीति महान चपला, रचाय आदि विपुला सरस मेळे.१३७ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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