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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ रणपिंगळ. प्रथम दले सत्तावश, बीजे त्रिश कल गणी आणो; आर्या विलोम उद्गीति, एज विगाथा विगाह पण जाणो. १२३ नारायणभट्टी प्रमाणे आर्याथी विलोम एटले उलटं छे, माटे एनरे ८, १९,२०,००० एटले आर्या जेटलांज रूप थाय छे. १०६ (१) पथ्या उदगीति. R ૧૫ ૧૨ ૧૮ रवि तिथि प्रथम दले ने, रवि अष्टादश बीजे आवे; पथ्याउद्गीतिमां, एवी पथ्या समी विरति लावे. १०७ (२) आदिविपुलाउद्गीति. विपुलायति आदि दलमां, ने उद्गीति नियम आणो; आदिविपुला नामे, ए उद्गीति तमे खरी जाणो. १०८ (३) अन्तविपुला उद्गीति. अन्त दले विपुला यति, उदगीतिमांय तो आवे; अन्त विपुला उद्गीतिने, नामे कविजन मन भावे. १०९ (४) उभयविपुला उद्गीति. उभय दले विरति विपुलानो, आवे सदा जेमां; उभय विपुला उद्गीति, तो एवी जणायछे एम. १२६ For Private And Personal Use Only १२५ १२६ १२७ ११० (५) मुखचपला पथ्या उद्गीति. पथ्या यति द्विदलमां, मुखेज चपला धरो ज्यारे; मुखचपला पथ्या ते, उद्गीति तो गणो तमे त्यारे. १११ (६) मुखचपला आदिविपुला उद्गीति. चपला अणाय मुखमांह, ठीक विपुला यति आवे; मुखचपलादि विपुला, उद्गीति नामनेज शोभावे १२९ ११२ (७) मुखचपला अन्तविपुला उद्गीति. मुख दलनी मांह चपला, विराम विपुलातणो छेले; १२८
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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