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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगळ १३१ (९) जघनचपलापथ्यार्यागीति... जघनन चपला पथ्या, आर्यागीति विचारी कहुँ त्यम करजो; अन्त दलमांह चपला, विराम पथ्यातणा द्विदलमां धरजो. १४९ १३२ (१०) जघनचपला आदिविपुला आर्यागीति. जघनजचपला आदिविपुला, आर्यागीति बने ठिक तो छे, छेला दलेज चपला, विराम आदि विषे विपुलांनो छे. १५० १३३ (११) जघनचपला अन्तविपुला आर्यागीतिं. जघनजचपला अन्ते, विपुला आर्यागीति रचो तो तेमां; अन्ते रचाय चपलातणा, नियमने विरति विपुला जेमां. १५१ १३४ (१२) जघनचपलाउभयविपुला आर्यागीति. जघनजचपला उभयविपुला, आर्यागीति विषेछे सारा; द्विदले विराम विपुलातणा, जघनमां धरोज चपला धारा. १५२ १३५ (१३) महाचपलापथ्यार्यागीतिः द्विदले रचाय चफ्ला; अने द्विदलमा विराम पथ्याना तो; प्रथ्या महाजचपला, गणाय आर्यागीति खरी छे आ तो. १५३ १३६ (१४) महाचपला आदिविपुला आर्यागीति. आदि दलमांह विपुलातणो, विरति बे दल चपला नि'म रीति आदिविपुला सहित तो, महाज चपला रनाय आर्यागीति.१५४ १३७ (१५) महाचपला अन्तविपुला आर्यागीति. द्विदले रचाय चपला, यति विपुला जघन विषे छे स्थिति अन्तविपुला माज चपला, सहित तो रचाय आर्यागीति. १५५ १३८ (१६) महाचपला उभयविपुला आर्यागीति. द्विदले धराय चपलातणा, नियमने यति विपुलाना धारी; उभयविपुला महान चपलान, आर्या गीति बनेछे सारी. १५६ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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