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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २४ ] राजविद्या । हो और एक भाव हो । पुरुषार्थ धर्म युक्त हो । प्रकृति रचना और कार्यों को देखे । सर्व साधारण की जान पहचान के वास्ते राजा का वेष और वाहन साधारण न हो कोई विशेष चिन्ह अवश्य हो परंत गुप्त वर्त्तान्त की प्राप्ती के समय अवश्य नहीं है । जादे वा अधिक अंश से मनुष्यों से ही मनुष्या की सुख शान्ति स्थिति और प्रबन्धों की स्थिरता है और संपति सौभाग्य ऐश्वर्य धन और राज्य है । प्रीति के साथ लोक संग्रह वा प्रीति के साथ प्रजाजनों को अपना करना वह राज्य स्थिर अचल और ध्रुव है । कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं है जो योजक अधिकतर योग्य है | दूरवाले से पास रहनेवाले वा स्वदेशी पास रहनेवाले अधिकतर उपयोगी ( कामके ) होते है यदि धर्म से आपस का व वि हो । धर्म से लोक संग्रह करना वा लोकों को अपना करना । आपस के हित के लिये धर्म से तप पुरुषार्थ परिश्रम करते हैं तिन प्रत्येक For Private And Personal Use Only
SR No.020594
Book TitleRajvidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbramhachari Yogiraj
PublisherBalbramhachari Yogiraj
Publication Year1930
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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