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राजविद्या।
[२३] उपासना-सदाचार और योग है इसके बाद अपने धर्म रक्षान्याय को संभाले । प्रथम क्षत्रि. याणा वीर सभटों के प्रति दिन शस्त्र अस्त्रों के अभ्यास को देखे । फेर न्याय को । राज्य कर्म चारियों की योग्यता और उनके कामों को देख ता रहै । स्वतन्त्रता के साथ प्रजावों से मिलता रहै । चार गुप्त गूढ वेष पुरुषों के उत्साह से सब गुप्त वत्तान्त को जान्ता रहै । जमा खरच देखता रहै । परम अवश्य का उपाय पहले करना चा. हिये । भोजन । राजविद्योपदेश वा प्राचीन वीर वर्त्तान्त वार्ता सुनकर धर्म को पकड़ना वा वीर सुभटों के यश को वा धनवान् और ज्ञानियों की कीर्ति इतिहासों को सुनना चाहिये । अपने इष्ट मे दृढ ( मजबूत ) आस्तिक भाव हो । शरीर इन्दियां अपने वश में हो। सदाचार हो। अपनी मातृ भाषा मे प्रीति हो। अपना ही शुद्ध बलीष्ट भोजन। अपना ही वीर वेषः तिस करके प्रभाव है। अपनी ही जाति मे मर्याद से विवाह
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