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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजविद्या । [८] भाजन के प्रबन्ध के साथ मुकरिर हो धर्म प्रचा. र के लिये ॥ जितेन्द्रि स्पन्न कसरत मेहनत मे अभ्यास इसीतरह अस्त्र शस्त्रों का अभ्यास अप. नी रक्षा के लिये सब जातियों का है। इसी तरह जब वीर्य पकजाय पुष्टतरुण अवस्था में विवाह हो ॥ सदाचार शुद्ध धारणा तिरसे जगत मे सुख शान्ति की स्थिती के लिय जगत हित के लिये ये मनुष्य संतति ( परिवार ) को पहले शिखलानी चाहिये ॥ सार शिक्षा वा सर्वोपरी विद्योपदेश सरुमे देना परम धर्म है । श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ १२ न्याय मर्यादा प्रबन्धः ॥ स्वकीय रक्षाधिकारस्तु सर्वषामास्ति तेषां दोषो न पश्यते ॥ धर्म विधायकस्य सहायता संपादकापि धार्मिमक एवज्ञयः तथैवा धर्मविधायकस्य पक्षपात्य धार्मिक एव॥ मनसामात्मना शुद्धतां समीक्षणम् वा For Private And Personal Use Only
SR No.020594
Book TitleRajvidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbramhachari Yogiraj
PublisherBalbramhachari Yogiraj
Publication Year1930
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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