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जैसा कि परपोतेके विवाह समय में लड़दादे का जन्म होना। ___टाडसाहब व उनके मतानुयायियोंकी भूलवाभ्रम दिखलानके लिये तो प्रथम तो स्कन्द पुराणोक्त श्रीमानक्षेत्र माहात्म्यमें के पुष्करणोपाख्यान' आदिकी शास्त्रोक्त कथाही सूर्य के समान प्रकाशमान है,तिस परभो इस देशके प्राचीन इतिहासवेत्ता 'रिपोर्ट मर्दुमशुमारी राज्य मारवाड़' (सन् १८९१) के निर्माता महाशयने तो प्राचीन इतिहासों के कई पुष्ट प्रमाण बताकर पुष्करजी के तालाब खुदने के समयसे सैकड़ोंही वर्षों पहिले हो से पुष्करणे ब्राह्मणों की विद्यमानता स्पष्ट सिद्ध कर दी है। - इसके अतिरिक्त टाडसाहब के सहधर्मी प्राचीन इतिहास लेखक पादरी एम. ए. शैरिङ्ग साहिब, एम, ए., एल एल. बी.' ने भी अपनी इतिहासकी पुस्तक में जहां १० प्रकार के ब्राह्मणों का वर्णन किया है वहां. पुष्करणे ब्राह्मणों की गणना पञ्च द्राविड़ों में से गुर्जर ब्राह्मणों में किई हैं।
यही नहीं किन्तु स्वयं भारत गवर्नमेण्ठने भी सन् १९०१ ई० की भारतवर्षीय मनुष्य गणनाकी रिपोर्ट की २५ वीं जिल्द (राजपूताने के प्रथम भाग) के पृष्ठ १४६ में स्पष्ट स्वीकार किया है कि "The Pushkarnas are a section of the Gurjar Brahmans" अर्थात् पुष्करणे ब्राह्मण गुर्जर ब्राह्मणोंकी एक शाखा होएवं फिर पृष्ठ१६४में पश्च द्राविड़ों में के गुर्जर ब्राह्मणों के२ भेदों में से प्रथम में नागर परोशनोरा, उदम्बर, पल्लीवाल, पुष्करणा और श्रीमालियोंकी गणना किई है।
यदि टाडसाहेब व उनके अनुयायी गण थोड़ा सा भी परिश्रम उठाकर अन्यान्य इतिहासों का कुछ भी मिलान कर लेते तो निश्चय है कि नतो टाटसाहब ही ऐसी भूल करते और न उनके अनुयायीगणभी 'मक्षिकास्थाने मक्षिका' की भाँति मिथ्या पातको लिखकर अपनी पुस्तक को दूषित करते ।
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