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सीसे पुष्करणे कहलाने-की वात सुनने में माती देखके इस मि. थ्या लोकोक्ति का मूल कारण जानने की खोज किई तो इसका मूल कारण टाह साहब कृत 'राजस्थान नामक राजपूताने के इतिहास की अंग्रेजी पुस्तक ही विदित हुई । उसके दूसरे भाग में जैसलमेर के इतिहास के ७ वें अध्याय में पुष्करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति पुष्करजी पर होने की एक मिथ्या 'अजब कहानी' लि. ख दी है । और कुछ भी परिश्रम न उठाने वाले इतिहास लि. खने वालों के लिये तो आजकल टाड-राजस्थान पुस्तक ही आधारभूत होने से किसी अन्य अंग्रेज़ने भी वही वात अपनी२ पुस्तक में 'भेड़ियाधसान' की तरह आँख मीचके लिख दी है। किन्तु यह विचार करने का कुछ भी कष्ट न उठाया कि जिस टाड-राजस्थान के आधार वा भरोसे पर हम ऐसी ऊट पटाँग वात लिखते हैं उसी पुस्तक में-और उसी जैसलमेर ही के इतिहास के २ रे ही अध्याय में-पुष्कर खुदने से २०० वर्ष पहिले ही एक पुष्करणे हो ब्राह्मण द्वारा भादी राजा देवराजजी का शत्रुओं से बचाये जानेका वृत्तान्त लिखा हुआ विद्यमान है. जिसे तवारीख जैसलमेर व रिपोर्ट मर्दुम शुपारी राज्य मारवाड़ भी स्वी कार करती हैं और जिसका खुलासा इस पुस्तक के पृष्ठ ३१ से ३९ तक में किया गया है । जबकि पुष्कर खुदने से ३०० वर्ष पहिले की तो पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता वयं उन्हीं टाड साहब ही के उक्त कथन से स्पष्ट सिद्ध है और अन्यान्य इति. हासों से तो इससे भी सैकड़ों ही वर्ष पहिले की प्राचीनता के अनेक पुष्ट प्रमाण मिलते हैं तिसपर भी इनकी उत्पत्ति पुष्कर खुदने पर होने की 'अजब कहानी' लिख देना ठीक वैसा ही है
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