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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० सं० ८७७ में तणोट नगर के भाटी राजा तराड़ जी ने अपने पुत्र विजयराज को युवराज नियत करके आप स्वयं श्री लक्ष्मीनाथजी की सेवा करने लगे । और उस राज्य मन्दिर में कथा बाँचने के लिये पुष्करणे ब्राह्मण टङ्कशाली (जो पोछे से व्यास कहलाये) मानजी को रखे । इन्ही मानजी की रम्भा नाम की कन्या भठिण्डे के वाराह जाति के राजाओं के वंश परम्परा के पुरोहित देवायतजी के पुत्र दीनजी को व्याही थी। सं० ८७५ में भठिण्डे के वाराह जाति के राजा जूने का पुत्र नाईया तणोट नगर के भाटी राजा तराड़ जी व उनके पुत्र विजयराज से पहिले की पराजय का बदला लेने को गजनी के बादशाह हुसैनशाह की सेना अपनी मदद के लिये मुलतान से ले आया। इस घोर सङ्गाम में दोनों ओर के सहस्रों मनुष्य मरे। तो भी जय तो भाटियों ही की हुई। परन्तु बहुत से नाटी मारे जाने के उपरान्त कइ अन्य जातियों में भी जा मिले। उन में कुं. वर डुला, चूडा और डागे की सन्तान महेश्वरी पहाजनों में जा मिली, जिनसे दुला, चण्डक और डागा जातिये प्रसिद्ध हुई। इन में डागेने तो रंगा और चण्डकने विशा जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों की कुलदेवियों के शरण में जा के रक्षा पाई थी, इस उपकार में अपने वंश के लिये डागोने तो रंगों की कुलदेवी 'सच्चाई' को और चण्डक ने विशोंकी कुलदेवी 'आशपुरा' को कु. लदेवी मानीथी सो आजतक वैसे ही मानते आये है।। सं० ७२७ में सातलमेर के तुबर राजा शङ्करने अपनी कन्या गढ़ मरोट के भाटी राजा मूलराज कोव्याहो । उस समय उन के वंश परम्परा के पुरोहित कपिलस्थ लिया (छाँगणी) For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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