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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्तान अब तक चारणों की जाति में विद्यमान है और पुष्करणे ब्राह्मण रत्नू की सन्तान होने से रत्नूचारण कहलाती है। और रतुनू के दूसरे भाइयों को भाटी राजा देवराज ने अपने पुरोहित बनाये जिन की सन्तान अद्यावधि पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति में विद्यमान है । और भाटी देवराज के वशधर होने से जैसलमेर के महाराजाओ की पुरोहिताई सदासे करते आये हैं। विशेष ही विचार करने का स्थल है कि कहां तो पुष्कर खुदने पर (सं० १२१२ में) पुष्करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति को अजब कहानी और कहां पुष्कर खुदने से ३०० वर्ष पहिले (सं. ८९८ में) ही पुष्करणे ब्राह्मणों का विद्यमान होना ? ये दोनों परस्पर विरुद्ध बातें एक ही जैसलमेर के इतिहास में लिखी गई हैं इस से बढ़कर टाड साहब की और क्या भूल होगी? टाड राजस्थान के इस लेख से पुष्कर खुदने से ३०० वर्ष पहिले पुष्करणे ब्राह्मण विद्यमान थे इतना ही नहीं किन्तु पुष्कर खुदने से ५०० । ७०० वर्ष पहिले भी पुष्करणे ब्राह्मणों का वि. द्यमान होना स्पष्ट सिद्ध होता है। क्यों कि देवराज को बचाने वाला पुष्करणा ब्राह्मण पुरोहित रत्नू भठिण्डे के वाराह जाति के राजाओं के वंश परम्परा का पुरोहित था अतः कमसे कम १०।२० पोढ़ियों से तो इन की पुरोहिताई होनी ही चाहिये तब तो सं० ८९८ से भी २०० । ४०० वर्ष पहिले ही से पुष्करणे ब्राह्मणों का विद्यमान होना स्वयं सिद्ध हो गया तो फिर पुष्कर खदने से ५०० । ७०० वर्ष पहिले से पुष्करणे ब्राह्मणों का विद्यमान होना तो मानना ही पड़ेगा । परन्तु पुष्करणे ब्राह्मणों के इति. हास से इस से सैंकड़ों ही वर्ष पहिले से विद्यमान होने का पता लगता है जिन के और भी कई प्रमाण आगे लिखता हूं। For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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