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इशारा क्यों नहीं किया? बैलगाड़ी वाला बोला, हुजूर! टाटा सुमो वाले को मेरा बैलगाड़ा ही नजर नहीं आया तो मेरा हाथ क्या नजर आता, तभी तो गाड़े से आकर भीड़ गया। हमारी भी यही दशा हो रही है। हाथ को देखने का प्रयास कर रहे हैं, बड़ा गाड़ा नजर नहीं आ रहा है। कहते हैं, आत्म-दर्शन नहीं होता, आत्म-प्रतीति नहीं होती, आत्मानुभूति नहीं होती। आत्मा का अवलोकन नहीं होता । कहाँ ढूँढ रहे हो? क्या ढूंढ़ रहे हो? अपनी आत्मा तो अपने पास ही है। अपनी शक्ति अपने भीतर है। उसका न तो कोई नाम है, न उसे छुआ जा सकता है और न उसे किसी को बताया जा सकता है, उसका कोई रूप नहीं
हम अपने आपको तन से ऊपर उठाएँ, विचारों से ऊपर उठाए, मन से ऊपर उठाएँ, वह पंच परमेष्ठि, परमात्म स्वरूप तत्त्व स्वयं हमारे अंदर ही है, जरा उसका अवलोकन करो, अपने आपको निहारो, मन के पार, तन के पार और वचन के पार। आत्मा है यह भी कहने की जरूरत नहीं है। "है" इसके लिए कहा जाता है, जो कभी नहीं थी और अब है, बाद में नहीं रहेगी। इसलिए आत्मा की व्याख्या नहीं की जा सकती जो कल नहीं थी, आज है और कल नहीं रहेगी। जैसे यह भवन । कल नहीं था, आज है और हो सकता है कल न रहे । जब ईंट से ईंट अलग होगी तो इसे बिखरना ही होगा। इसी तरह आत्मा है। आत्मा की क्या व्याख्या करें। उसका तो न नाम है, न रूप है, न रस, गन्ध, स्पर्श कुछ भी नहीं हैं। आत्मा बस आत्मा है, शक्ति है, ऊर्जा है।
गीता बहन ने सीता बहन से कहा, मेरा बेटा दोस्तों के साथ खेलने जाता है तो इतना गंदा होकर आता है कि मैं साबुन से इतना घिसती हूँ, इतना घिसती हूँ कि साबु की पूरी बट्टी पूरी हो जाय तब जाकर कहीं पहचान में आता है। तब सीता बहन ने कहा, मुझे तो इससे भी बड़ी मुश्किल है। मेरा बेटा उसके बारह दोस्तों के साथ खेलते-खेलते इतना गंदा हो जाता है इतना मेला-घेला हो जाता है कि मैं बारह को घिस-घिस कर साफ करूं, तब मुश्किल से मेरा बेटा पहचान में आता है, फिर घर पे लाना पड़ता है। अपनी भी हालत इसी
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