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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे भरं न नित्थरज्जा, सप्पुरिसनिसेवियं च मग्गं भीओ न समत्थो अणुचरिडं। तम्हा न भीइयव्वं भयस्त वा वाहिस्स वा रोगस्स वा जराए वा मच्चुरस वा अन्नरस वा एवमाइयस्स । एवं धिज्जेण भाविओ अंतरप्पा संजयकरचरणनयणवयणो सूरो सच्चज्जवसंपन्नो ॥ सू०७॥ टीका-'चउत्थं ' चतुर्थी भावनामाह-' न भीइयव्वं ' न भेतव्यं भयं न कर्तव्यम् । कथं भयं न कर्तव्यम् ? इत्याह-' भीयं' भीतं भययुक्तं प्राणिनं खलु ' भया' भयानि 'लहुयं ' लघुकं शीघ्रम् ' अइंति' आयन्ति प्राप्नुवन्ति, तथा ' भीओ' भीतः ‘मणुसो ' मनुष्यः 'अवितिज्जओ' अद्वितीयः=असहायो भवति, अयं भावः-भीतो मनुष्यो न कस्यापि सहायको भवति, न कोऽपि तस्य सहायको वा भवति । तथा-' भीओ' भीतो मनुष्यः ‘भूएहिं ' भूतैः= प्रेतैः । धिप्पइ ' गृह्यते, भूताविष्टो भवतीत्यर्थः । तथा-भीतः 'अन्नं पि' अन्यमपि ' मेसेज्जा ' भीपयते । तथा-भीतः । तवसंजमं पि ' तपः संयममपि___ अब सूत्रकार चौथी भावना जो धैर्य भावना है उसे कहते हैं'चउत्थं' इत्यादि। टीकार्थ -( च उत्य ) वह चौथी धैर्य भावना इस प्रकार से है (न भीइयव्वं ) भय नहीं करना चाहिये । क्यों कि (भीयंखु भया अइंति लहुअं ) जो भययुक्त होता है उस प्राणी के पास निश्चय से भय शीघ्र आते हैं। (भीओ अवितिज्जओ मणूसो ) तथा जो भय से डरता है ऐसा मनुष्य अद्वितीय होता है-वह न किसी की सहायता कर सकता है और न कोई दूसरा मनुष्य उसका ही सहायक होता है। (भीओ भुएहिं घिप्पड़ भीत मनुष्य को भूत पकड़ लेते हैं। भीओ अन्नं पि हु भेसेज्जा) भय से भीत हुआ मनुष्य दूसरों को भी भययुक्त वे सूत्र४।२ ये थी धैर्य लापन नामजी माना विडे -" च उत्थं " त्यादि टीर्थ–'चउत्थं" ते याथी धैय भावन! २५॥ प्रभा छे.."न भीइयव्व' मय भवन नहीं. ४.२६५ "भीयं खु भया अइति लहुअंरे भी हाय छेते व्यक्ति पासे यास मय शी मावे छ. " भीओ अवितिज्जओ मणूसो" तथा यथी ७२ छे वो मनुष्य द्वितीय हाय छ-ते धने. મદદ કરી શકતો નથી અને કેઈ બીજે મનુષ્ય તેને સહાયક થતું નથી. " भीओ भूएहिं धिप्पइ " अयमीत मनुष्यने भूत ५४ी से छे. “ भीओ अन्नं पि हु भेसेन्जा" मयनात भनुष्य मी सोने ५५ लयलीत ४२ छ, तया“ भीआ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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