________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६६४
प्रश्नव्याकरणसूत्रे सोहि' चतुर्दशपूर्विभिः । पाहुडत्यविइयं' प्राभृतार्थविदितम्-पूर्वगतांशविशेषाभिधेयतया सत्यवादपूर्वनाम्ना ज्ञातम् , तथा-' महरिसीणं यं' महर्षीगां च 'समयपइण्णं ' समप्रदत्तं समयेन-सिद्धान्तेन प्रदत्त-वितीर्ण, महर्षिभिः सिद्धान्तरूपतया गृहीनमित्यर्थः, तथा 'देविंदनरिंदभासियत्थं' देवनरेन्द्रभाषितार्थम् देवानाम्-इन्द्रादीनां नरेन्द्राणां चक्रवर्तिप्रभृतीनां भाषितः प्रतिभापितोऽर्थः प्रयोजन यस्य तत् , तथा-'वेमाणियसाहिये' वैमानिकसाधितं वैमानिक वेमानिकदेवैः साधित-साधनाविषयीकृतं, सेवितमित्यर्थः, तथा-' महत्थं ' महार्थस्-महान् अर्थः
प्रयोजनं यस्य तत् , तथा ' मंतोसहिविज्ञासाहणत्थं ' मन्त्रौषधिविधासाधनार्थम्= मन्त्रीपधिविधान साधनमा प्रयोजनं यस्य तत् , तेन विना नसिद्धयभावात् , तथा-' चारणमणसमणसिद्धज्जि ' चारणगणश्रमगसिद्धविद्यम्=चारणगणानां= पाहडत्यधिइये ) इस सत्य को चतुर्दश पूर्वधारियों ने प्राभूतार्थ रूप से विदित किया है अर्थात् पूर्वगत अंशविशेष की अभिधेयता से सत्यवादपूर्व इस नाम से जाना है, (महरिसीण य समयपहाणं ) हर्षियों ने इसे सिद्धान्तरूप से स्वीकार किया है, (देवनरिंदभासियत्यं ) इन्द्रादिकों के लिये तथा चक्रवर्ती आदि ( राजाओं ) के लिये इसका प्रयोजन उपादेयरूप से कहा गया है. (वेमाणिय साहियं) वैमानिक देवों ने इस सत्य को अपनी साधना का विषयभूत बनाया है अर्थात् इसका सेवन किया है (महत्थं) यह महान् अर्थ-प्रयोजन वाला है ( मंतोसहिविज्जापाहणत्वं ) मन्त्रऔषधि ऐवं विद्याओं का साधन इसका प्रयोजन है क्यों कि सत्य के विनामंत्रादि सिद्ध नहीं होते है, (चारणगणसमणसिद्धविज्ज ) इसी के प्रभाव से इसी चारणगणों को आकाशगा
पुब्बीहिं पाहुडस्थविइयं " 24॥ सत्यने यो पूधाशमा आताथ३ विहित કર્યું છે એટલે કે પૂર્વગત અંશવિશેષની અભિધેયતાથી સત્યવાદ પૂર્વ એ नामथी तथु छ. “ महरिसीणं य समयपइण्णं " भडपियोगे तेने सिद्धांत३थे २वायु छ " देवनरिंद भासियत्थं " न्द्राहियोन तथा यस्ता मति नरेन्द्रोने भाट तेनुं प्रयोशन उपाय३थे वायु छ, “ वेमाणियसाहिय " વૈમાનિક દેએ આ સત્યને પિતાની સાધનાને વિષય બનાવ્યું છે એટલે કે तेनु सेवन थुछे, “ महत्थं " ते महान म-प्रयोना छ. " मंतो सहिविज्ञासाहणत्थं " ते मत्र-मौषधि भने विद्यासानु साधन तेनुं प्रयोगन छ ४।२४ है सत्य विना भत्राहि सिद्ध यतi नथी, "चारणगणसमणसिद्ध विज्ज" तेना प्रमाथी या२१ गणाने माशामिनी विद्यानी तथा श्रमणाने
For Private And Personal Use Only