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प्रश्नब्याकरणसूत्रे
संमति अहिंसामाहात्म्यमाह
मूलम्-एसा भगवई अहिंसा, जा सा भीयाणं पिव सरणं पक्खणिं पिव गयणं, तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं, समुद्दमझेव पोषवहणं, चउप्पयाणं च आसमपयं, दुहट्रियाणं च ओसहिबलं, अडवीमज्झे च सत्थगमणं, एत्तो विसिट्रतरिया अहिंसा जा सा पुढवीजल अगणि मारुयवणस्सइ - बीय -- हरिय -- जलचर---
थलचर-खहयर तस-थावर-सव्वभूयखेमकरी ॥ सू० ३॥ _टीका-'एसा भगवई ' इत्यादिएषा-जिनशासनप्रसिद्धा-अहिंसा भगवती या सा ‘भोयाणं पिव सरणं' भीतानामिव शरणम्=भय भीतानां प्राणिनां त्राणाथ गृहमिवास्ति, ‘पकवीणंपिच गयणं ' पक्षिणामित्र गगनम्-पक्षिणां गगनमिव, यथा पक्षिणां गमने गगनमाधारो भवति, तथैव सर्वधर्माणामियमहिंसाऽऽधारः। 'तिसियाणं पिब सलिलम्= __ अब सूत्रकार इस अहिंसा के माहात्म्य को प्रदर्शित करते है'एसा भगवई' इत्यादि।
टीकार्थ-( एसा ) जिनशासन में प्रसिद्ध यह ( अहिंसा भगवई ) अहिंसा भगवती (जा सा ) जो वह अहिंसा (भीयाणं पिव सरणं ) भयभीत हुए प्राणियों की रक्षा करने के लिये घर जैसी है। (पक्खीणं पिव गगणं ) तथा जिस प्रकार पक्षियों को गमन करने में आधारभूत आकाश होता है उसी तरह समस्त धर्मों की आधारभूत यह अहिंसा ही है। (तिसियाण पिव सलिलं ) जिस प्रकार तृषित व्यक्तियों की 6 सूत्रा२ मा मरिसानु मान्य शांव छ–“ एसा भगवई " त्या.
“एसा" MAAसनमा प्रसिद्ध ते" अहिंसा भगवई " भडिंसा माती, "जा सा” “भियाणं पिंव सणं" भयभीत गनेर प्राणी मानी २२॥ ४२. वा माटे ५२ समान छ, “पक्खीणं पिव गगणं " तथा भ पक्षीशान ગમન કરવામાં આકાશ આધારભૂત થાય છે, એ જ પ્રમાણે સમસ્ત ધર્મોને भाटे माधारभूत २ महिसास छ, “ ति सियाणं पिव सलिलं" म तर.
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