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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्रे । 6 महाचलमौष्टिक चाणूरादिमल्ळविध्वंसकाः कृष्णवधार्थं कंसेन प्रवर्तिते मल्लयुद्धे बलरामेण मौष्टिकाभिधाना मल्लो वासुदेवेन च चाणूराभिधानो मल्लो निहतः इति । 'रिसमवाइणो' रिष्टष्टपभघातिनः = रिष्टाभिधानकंसवलीवर्दघातकाः, केसरिमुहविकाडगा ' केसरिमुख विस्फाटकाः = इदं विशेषणं त्रिपृष्टकाभिधप्रथमवासुदेवापेक्षया बोध्यम् । स हि नगरोपद्रवकारि वनकानननिवासि महासिंह मुखं विदारितवान् ।' दरियनागदप्पमहणा' दृप्तनागदर्पमथना : = यमुना निवासि महाविषकालनागगर्व विनाशकाः, 'जमलज्जुणभंजणा ' यमलार्जुनभञ्जकाः = यमलार्जुननुक्षविनाशकाः तौ हि पितृवैरिणौ विद्याधरौ यमलार्जुन नामको वृक्षरूप विकुर्व्य पथि स्थितौ चूर्णितवन्तः । ' महासउणिपूयणरिऊ ' महाशकुनिपूतनारिपवः = महाशकुनिः पूतना च विद्याधरपल्यौ, तयोः रिपवः । वाल्यावस्थायां मारा, तथा वासुदेव कृष्ण ने चाणूर नामके मल्ल को मारा यही बात "" बलवग गज्जंत० " इस पद द्वारा प्रदर्शित की गई है। तथा ( रिट्ठवसभाणो ) जो कंस के रिष्ट नाम के मायावी क्लीवर्द के घातक थे तथा ( केसरिमुहविष्फाडगा) केशरी सिंह के मुख को भी फाड़ देते थे, यह विशेषण त्रिष्ष्ठ नारायण की अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये, क्योंकि उन्हीं ने नगर में उपद्रव मचाने वाले जंगली सिंह के मुख को विदारित किया है। ( दरियनागदप्पमहणा ) तथा जिस नारायणने यमुना निवासी महाविषैले काली नामकसर्प का विनाश किया है तथा ( जमलज्जुण भंजणा ) नारायण ने पिता के वैरी दो विद्याधरों को की जिनका नाम यमल और अर्जुन था और जो मार्ग में वृक्ष का रूप अपनी विक्रिया से बनाकर खड़े हो गये थे उनको मारा है ( महासउणि पूयरिक) तथा जो विद्याधर की महाशकुनि एवं पूतना नामक दो .6 (6 કૃષ્ણે ચાર નામના મલ્લને માર્યાં એ જ વાત " बलवगगज्जंत " यह द्वारा તાવવામાં આવી છે. તથા रिट्ठवसभघाइणो " उसना रिट नामना માયાવી અર્લીવના ઘાતક હતા તથા 'केसरी मुह विष्फाडगा " सिंहना મુખને પણ ફાડી નાખતા હતા. તે વિશેષણ ત્રિપૃષ્ઠ નારાયણને અનુલક્ષીને વપરાયું છે, કારણ કે તેમણે નગરમાં ઉપદ્રવ મચાવનાર જંગલી સિહુના મુખને शीरी नाभ्यु तुं. “ दरियनागदप्पमहणा " तथा के नारायणे यमुनामा रहेता અતિશય ઝેરી કાળીનાગને વશ કર્યો છે, તથા जमलज्जुणभंजणा " नाराયણે તેમના પિતા યમળ અને અર્જુન નામના બે દુશ્મન વિદ્યાધરે, કે જે માર્ગોમાં પોતાની વૈકિય શક્તિથી વૃક્ષના રૂપ લઈ ઉભા થઈ ગયા હતા तेभने भार्या हता. " महासउणिपूयणरिक ” तथा ने विद्याधरनी महाशत्रुनि अने 66 For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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