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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नव्याकरणसूत्र येषां ते तथा परमसुगन्धिद्रव्यचन्दनचूर्णचम्पकादिकुसुमसम्भारसम्भृतमस्तका इत्यर्थः, 'कप्पियछेयायरियसुकयरइयमालकडगंगयतुडियवरभूसणपिणद्धदेहा' -कल्पितछेकाचार्यसुकृतरतिदमालाकटकाङ्गत्रुटितवरभूपणपिनद्ध देहाः = तत्र काल्पितानि = परिधृतानि छेकाचार्येण = शिल्पिवरेण सुकृतानि = मुष्ठु रचितानि रतिदानि = प्रेमजनकानि यानि माला कटकाङ्गादत्रुटितवरभूषणानि= माला सुवर्णमाला कटका:-कङ्कणानि ' कडा' इति प्रसिद्धानि, अङ्गदानि= केयूराणि त्रुटिताः बाहुरक्षिकाः, तथा वरभूषणानि-मुकुटकुण्डलादिनि च तैः पिनद्धः-व्याप्तो देहो येषां ते तथा मुकुटकेयूरकङ्कणादिविविधभूषणभूषितदेहा इत्यर्थः, 'एकावलिकंठसुरइयवच्छपालंबपलंघमाणसुकयपडउत्तरिजमुद्दियापिंगलंगुलिया ' तत्र-' एकावलिकंठसुरइयवच्छा' एकावलीकण्ठसुरचितवक्षस्काः एकावली-विविधमणिग्रथितहारः कण्ठे कण्ठपदेशे सुरचिता-परिधृता वक्षसि-वक्षः स्थले येषां ते तथा 'पालंबपलंबमाणसुकयपडउत्तरिज्जा' प्रालम्वप्रलम्बमान के पुष्पों से जिनका मस्तक सदा शोभित रहता है, अर्थात् परमसुगंधित द्रव्यों से चंदन के चूर्ण से चम्पकादि कुसुमों के संभार से जिनका मस्तक निरन्तर भरा रहता है। तथा (कप्पिय छेयायरिय-सुकय-रइय माल-कडंग गय-तुडिय-वर भूसणपिणद्ध देहा) जिनकी देह अच्छी तरह से पहिरे गये आभूषणों से, सुवर्ण की मालाओं से, कटकों कड़ों से, अंगदों-(भुजबंधों ) से, त्रुटितों से बाहुरक्षिकों से, एवं मुकुट कुंडल आदि उत्तम अलंकारों से, कि जो कारीगरों के द्वारा बहुत ही अच्छी तरह बनाये हुए होते हैं तथा प्रेमोत्पादक होते हैं इनसे इनकी देह व्याप्त रहती है (एगावलिकंठ सुरइय वच्छपालंबपलंघमाणलुकयपड उत्तरिज्ज પુખેથી જેમના મસ્તક સદા સુશોભિત રહે છે, એટલે કે અતિશય સુગંધયુક્ત દ્રવ્યથી, ચન્દનના ચૂર્ણથી, ચંપક આદિ પુપના સંભારથી જેમનાં भस्त सहा युटत २७ छ, तथा “कप्पिय छेयायरिय,-सुकय,-रइय,-माल, कडंग-गय, तुडिय, वर भूसणपिणबद्धदेहा" मनां शरी२ सारी रीते परेस भाभूषणाथी, सुवानी भाणायाथी. ४iमाथी, " अगदो' 'मधे!' થી, તૃતિથી-બાહુરક્ષિકેથી, અને મુગટ કુંડળ આદિ ઉત્તમ અલંકારથી આભૂષિત રહે છે. જે અલંકારે સારા કારીગરોએ સારી રીતે બનાવેલાં હોય छ तथा प्रेमात्५६ हाय छे. “एगावलि-कंठ-सुरइवच्छ-पालंय-पलंबमाण सुकय पडउत्तरिन्ज-मुद्दिया-पिंगलंगुलिया " तथा विविध भाग 3 ७२ रेमनी For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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